नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-19
कदंभ और लक्षणा वहां का आनंदित करने वाले माहौल को खुशनुमा होकर देखी जा रही थी। वे सभी नाग मणि पुनः अपने-अपने नागों के शीश पर सुशोभित होने लगे,,,! सभी यथावत जिस तरह आए थे, उसी तरह नागकुमारियों से शुभाशीष ले वापस लौटने लगे,उस पंक्ति में जैसे आए थे। जब वह चाबी नागकुमारियों के नजदीक पहुंची तो कदंभ और लक्षणा की जैसे हृदय गति चरम सीमा पर थी। लेकिन परम संतोष था भी था। इतना विशाल सौम्य नाग रुप उसकी सोच से परे था।उसकी सारी कल्पनाएं, शिकायत व्यर्थ थी। वह आत्मग्लानि के भाव से शीश नीचे झुका उन नागकुमारियों को प्रणाम कर रही थी। तभी कदंभ और लक्षणा से सुखद और शीतल अनुभव किसी हथेली का प्राप्त हुआ। जैसे किसी ने उसके शीश पर आशीष के रूप में हाथ रख दिया हो।वह निश्चल अपने स्थान पर बैठें रहे।लेकिन उनका मन खुशी से नाचने लगा।
शरीर और आत्मा एकाकार की स्थिति में आ गए। लेकिन तभी मन किया कि एक बार आंखें खोल कर उस स्वरूप को मन में उतार ले। परंतु तब तक काफी देर हो चुकी थी। वह दरवाजे से लौट वापस अपने स्थान पर लौट चुकी थी।
एक पल तो लक्षणा और स्वयं कदंभ को भी लगा जैसे उन्हें जीवन का मुख्य सार ही मिल गया हो। क्योंकि इतना चमत्कारिक और सुंदर लेकिन सौम्य स्वरूप देख वे एक पल के लिए नागपत्री तक पहुंचने का विचार ही भूल गए थे। लेकिन तभी अचानक तेज बुलबुले के साथ एक जोरदार धमाका हुआ और विशाल गर्जन के साथ अचानक वहां असंख्य सिरों वाले नागों का आगमन आरंभ हुआ और देखते ही देखते उन पंच द्वारो के बंद होने से पहले एक विशेष सभा सदन जैसे वहां तैयार हो गया।
वे पंच द्वारा मानव रूप ले नाग परिवार के साथ उन आसनों पर विराजमान थे। उस समय जीवो में प्रमुख हर जीव उस स्थान पर उपस्थित था। और देखते ही देखते चाबी के भीतर का बुलबुला जिसमें कदंभ और लक्षणा को सुरक्षित कर अब तक उस चाबी ने रखा था। वह विशेष आकर्षण के कारण लुढ़ककर उस सभा सदन के बीचोंबीच जा पहुंचा। तब नाग माताओं ने अपने इशारों से चाबी को उस बुलबुले से उन दोनों को मुक्त करने का आदेश दिया।
देखते ही देखते कदंभ और लक्षणा दोनों ही पूरे सभा सदन के मध्य में खड़े थे। तब किन्हीं नाग श्रेष्ठ ने उनकी ओर इशारा कर कह,,,,,,,कदंभ और लक्षणा स्वागत है इस सभा में तुम्हारा.... कदंभ वर्तमान में स्वयं नर नारायण की जोड़ी की तरह इस युग में तुम दोनों की उपस्थिति को कहा जा सकता है।
हे कदंभ,, तुम अश्व श्रेष्ठ हो और लक्षणा तुम मानवीय काया में नाग शक्ति को समाहित कर उसे संरक्षित कर पाने में सक्षम एकमात्र हो, जिसने ना सिर्फ़ नाग शक्ति को विशिष्ट रूप में स्वीकार किया। वरन सृष्टि में सोच से भी परे उस नागपत्री के दर्शन का विचार कर रही हो। जिसकी परिकल्पना स्वयं हमने से भी कोई भी नहीं कर सकता। लेकिन तुम्हारा ना सिर्फ विचार करना, वरन उसके लिए प्रयास करना अत्यंत सराहनीय है।और तो और तुम्हारी इस सभा में उपस्थित जो एक युग में मात्र एक बार होती है, यह दर्शाती है कि तुम अवश्य ही अपने उद्देश्य में सफल हो, क्योंकि हम सभी की उपस्थिति किसी न किसी विशेष उद्देश्य को लेकर हुई है ।
उस आदिशक्ति और सृष्टि के रचयिता, उसके पालनकर्ता और आदि अंत तक सृष्टि के निर्माण की शक्ति देने से लेकर स्वयं ही उस सृष्टि का विनाश बिना किसी और के कर देने वाले स्वयंभू शिव की स्वीकृति और आशीर्वाद से ही संभव है, इसलिए तुम तुम भी अपने अपने आसन गगृहण करो। और देखते ही देखते उनके लिए तो उत्तम आसन वहां स्वयं ही प्रकट हो गए।
तब शुरुआत हुई लक्षणा और कदंभ के आसन ग्रहण करने के साथ ही हुए सृष्टि में परिवर्तन उसके प्रभाव कायाकल्प का नजदीक आना। और प्रलय की चिंता के विषय पर सभी ने अपनी अपनी राय रखी। और विचार व्यक्त किये कि किस तरह सृष्टि को बचाया जा सकता है। बहुत से विषयों पर कुछ प्रजाति ने खुलकर विरोध किया तो कुछ ने अपनी गलतियां स्वीकार कर उन्हें सुधारने का आश्वासन दिया।
इन सब के बीच एक बात स्पष्ट थी कि सभी चाहते थें कि इस नीलंभधरा पर सभी का समान अधिकार है। और सभी को स्वतंत्रता से जीने का अधिकार है। लेकिन इन सब के पश्चात भी जी प्राणियों ने प्रकृति के नियमों में दखलअंदाजी कि हैं उन्हें स्पष्ट रूप से आगह किया जाता है कि वे यथाशीघ्र अपनी गलतियों में सुधार करें अन्यथा इसके परिणाम उन्हें जल्द ही भुगतने होंगे। लेकिन फिर भी सब कुछ परिवर्तित और व्यवस्थित हो जाने के पश्चात सृष्टि में ओज बनाए रखने हेतु और प्राण वायु में शक्ति संचार के लिए एक बार पुनः उन शक्तियों को जगाना होगा जो संरक्षित और विशिष्ट रूप से तब तक के लिए के लिए क्रियाशील और लाभकारी नही होंगी, जब तक कि स्वयं कोई जीव जो वर्तमान सृष्टि का हो ।
उनकी मंत्रान से उन्हें प्रसन्नता सृष्टि कल्पना हेतु वरदान और शक्ति प्राप्त करें ।और उन शक्तियों को इस सृष्टि के वायुमंडल में लाकर बिखेर दें। तब कही यह सार्थक जीवन आसानी से जिया जा सकता है । और तब सभी ने कभी समुद्र मंथन की कथा सुनाई तो किसी ने आकाश में छुपे हुए रत्नों को बिजली की चमक से तोड़ने का सुझाव दिया। जिससे उनकी गुप्त ऊर्जाये स्वयं ही सृष्टि में फैल जाएगी।
लेकिन जब सभी ने सुझाव निष्फल होते नजर आए तब अंतिम लेकिन दुर्लभ उपाय के बाद नाग देवता द्वारा रखा गया, क्योंकि जब संपूर्ण सृष्टि एक तार में प्रलय की गोद में सामने जाती है, उस समय एक मात्र नाग जाति का ही यह कर्तव्य होता है कि वह सब कुछ देखते समझते इस पृथ्वी को जलमग्न होने के पश्चात भी बचा कर नहीं जीवन के लिए सुरक्षित रखे।
अंत में तय हुआ कि सभी प्राणी अपनी-अपनी शत्व शक्तियों को लक्षणा को प्रदान करें। ताकि वह सर्वप्रथम नागपत्री तक पहुंच उसकी शक्ति का संचारन वर्तमान सृष्टि की और करें। ताकि उसकी ऊर्जा और शक्ति से अत्यधिक सकारात्मकता को प्राप्त किया जा सके। और इस बात पर लक्षणा और कदंभ की जोड़ी को पूर्ण समर्थन प्राप्त हुआ।
क्रमशः....
Mohammed urooj khan
04-Nov-2023 12:33 PM
👍👍👍👍
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